उन्हें एक अच्छे जीवन के लिए ले जाया जा रहा था।
अंदर से थोर को मरने की इच्छा हुयी।
उसके चारों ओर उत्साह फीका होने लगा, गाँव वाले अपने घरों की ओर लौट गए।
“क्या तुम समझ पा रहे हो कि तुम कितने मूर्ख हो, मूर्ख लड़के?” थोर के पिता ने उसे कंधों से पकड़ कर ने कहा। “क्या तुम्हें एहसास भी है कि तुम अपने भाईयों के मौके को भी बर्बाद कर सकते थे?”
थोर ने गुस्से से अपने पिता के हाथ को धकेल दिया, और उसके पिता ने मुड़ कर उसके चेहरे पर एक थप्पड़ जड़ दिया।
थोर को यह बहुत चुभ गया था और अपने पिता को घूरने लगा। पहली बार उसके मन में ख़याल आया कि पलट कर अपने पिता पर वार कर दें। लेकिन उसने अपने आप को संभाल लिया।
“जाओ जा कर भेड़ ले आओ। अभी! और जब तुम लौट कर आओ तो मुझ से भोजन की उम्मीद मत करना। तुम्हें आज रात का भोजन नहीं मिलेगा, और तुम सोचो कि तुमने क्या किया है।”
“शायद मैं बिल्कुल भी वापस नहीं आऊँगा!” बाहर, अपने घर से दूर पहाड़ की ओर भागते हुए वो चिल्ला कर बोला।
“थोर!” उसके पिता चिल्लाए। सड़क पर खड़े कुछ गाँव वाले रुक कर देखने लगे।
थोर तेजी से चलने लगा, वो इस जगह से बहुत दूर जाना चाहता था, और फिर वो दौड़ने लगा। उसको यह ध्यान भी नहीं रहा कि उसकी आँखों में आंसू भर आए थे, अब तक के उसके सभी सपने जैसे कुचल दिए गए थे।
अध्याय दो
थोर गुस्से से उबल रहा था, वह घंटों पहाड़ी पर घूमता रहा, और फिर अंत में उसने एक पहाड़ी चुन लिया और उस पर अपने पैरों को हाथों से पकड़ कर क्षितिज के उस पार देखते हुए बैठ गया। उसने गाडी को आँखों से ओझल होते हुए देखा, उसके घंटों बाद भी धूल के गुबार को उसने उड़ते हुए देखा।
अब और कोई दौरा नहीं होगा। यदि वे कभी वापिस आयें भी तो, एक और मौके के लिए उसे बरसों इंतज़ार करना पड़ेगा — उसके भाग में तो बस इसी गाँव में रहना लिखा है। क्या पता उसके पिता अब एक और मौके की इजाजत दें भी या नहीं। अब तो घर में बस वो और उसके पिता रहेंगें, और यह बात तो पक्की है कि उसके पिता अब अपना पूरा गुस्सा उस पर ही निकाला करेंगें। सालों